Shehab Ji.
Brief History of Indian Comics Legends
-:Shehab:-
While searching for the cartoonist/painters of the Indian comics of Golden Era, I came across the fact that there were such great artist who kept the world oblivious to their identity by just doing their work quietly. They never craved for name, fame, or money. There are still some artists whom I have met, who never like reliving their self, to the outer world. Though they have a complete family, they like to spend his their life in isolation. From years, true artist of our country, never chased fame or money. The great artist of Indian comics exact replica of the above statement.
My research for the Indian Artist, took me Delhi, Mumbai, Pune Meerut. So many places around the nation. Some Among them are such artist about whom I couldn’t get, satisfactory information.
One of such great artist were "Shekh Shahabuddin" who was addressed as "Shehab ji" while collecting information about him I came across places like "Daravi,Dongari" in order to know more about him but luck didn't favour me. I could not get any information. Then I found "Prakash Nerulakar" a calligraphy artist at "Indrajal Comics". There were some difficulties as during those days only artist, story writer were mentioned in the comics even editor got their position on the last page in very small fonts even calligraphy was not there.
during many conversation with `Prakash ji, Aabid Surti. information which I got about Shehab ji was a silent story full of addercity. Shehab ji was sincere man though he had never shared his grieve with any one, still certain glimpse of his pain could be seen in his arts, Let’s take a quick visit through pages of his life.
He was born in Allahabad City. When he was 12 yr old, his Parent assassinated. His brother was a bus driver. Shehab ji couldn't complete his graduation after matrices in order to have some earnings, he worked as a carpenter. He did cartooning as free Lansing he created many cartoon characters like "Mangalu madari-Bandar Bihari, chhotu- lambu, Chimpu, Chaman Charli", Among these, his most popular character was Chimpu 1984, which was on the last page of comic "Indrajaal". Apart from this, there was one more character, "Chhotu Lambu" form "Parag", published in 1968. He even created many characters like Mangalu Madari-Bandar Bihari, Chaman Charli for Diamond comics. Apart from cartooning he was even a calligraphy artist. For 1cartoon strip he get Rs.5.
It was a time when trams use to serve peoples as a medium of travelling in Bombay (Now Mumbai). there came a day, when he was taking his strip to Bennett Coleman company (Times of India),as train arrived he tried to enter in it, and he couldn’t . Just when the second tram arrived he tried to step on it but somehow his leg struck in it. This incident completely altered Shehab ji life even after losing his legs; he always faced difficulties without any grievance .But he continuously attached with cartooning. Now it seemed like there was a kind of invisible bond between him Dilemma. His cartoon strip Chimpu was a picture story without dialogues his immense sense of humor makes people laugh just by looking at that strip by seeing cartoons only , its was seemed that he was highly with Charli Chaplin who without uttering a single word make people laugh. Even he named his one of character Chaman Charli. he spend his last few days of his life in such isolation that even his friends relatives were couldn't came to know that when this great artist has ended his beautiful journey.
In his short life span Shehab ji was completely devoid towards cartooning become immortal in the history of Indian comics. May be today he is not between us; his cartoon will always paint our live with motley colors.
(based on the conversation with Abid Surti and Prakash Nirulakar).
Avanika Rai,Usman Ali Khan.....:)
If you feel the given information is incomplete or it can be modified then please inform me.
भारतीय कॉमिक्स सभ्यता की खोज ''शेहाब जी ''
इंडियन कॉमिक्स के golden age के कार्टूनिस्ट /चित्रकारों और लेखको की खोज करते हुए मैंने जाना की कुछ आर्टिस्ट इतने महान है की वह चुपचाप अपना काम करते रहे .उन्होंने कभी नाम पैसा शोहरत की चाहत नहीं की .जहाँ तक की आज भी कई ऐसे आर्टिस्ट हैं जिनसे में मिला हूँ ,वह कभी भी अपने आप को बाहरी लोगो के बीच लाना पसंद नहीं करते हैं.
पूरा घर-परिवार होते हुए भी एकाकी जीवन पसंद करते हैं.सदियों से हमारे देश में होता आया है की एक सच्चा और अच्छा आर्टिस्ट कभी भी नाम पैसा शोहरत के पीछे नहीं भागता है.भारतीय comcis के इन महान आर्टिस्ट ने इसको बखूबी निभाया है.
भारतीय आर्टिस्ट को लेकर मेरी खोज मुझे Delhi,Mumbai , Puna ,Meerut और न जाने कहाँ कहाँ तक ले गई.इनमे कुछ आर्टिस्ट ऐसे हैं जिनके बारे में काफी कोशिश करने के बाद भी मैं बहुत कम जानकारी जुटा पाया हूँ .
ऐसे ही एक महान कार्टूनिस्ट थे ''शेहाब''(Shehab).शेहाब जी का पूरा नाम ''शेख शहाबुद्दीन'' था.शेहाब जी के बारे मैं जानकारी जुटाते हुए मैंने मुंबई के धारावी ,डोंगरी के कई चक्कर लगाए. लेकिन मेरे हाथ कुछ भी न लगा .तब मैंने इंद्रजाल कॉमिक्स के एक कैलीग्राफी आर्टिस्ट ''प्रकाश नेरुलकर'' को ढून्ढ निकला .यह बहुत मुश्किल था क्यूंकि उस वक़्त कॉमिक्स में सिर्फ आर्टिस्ट और कहानीकार का नाम ही होता था .कैलीग्राफी आर्टिस्ट का नाम नहीं होता था .एडिटर का नाम भी कॉमिक्स के आखरी पन्ने में बहुत छोटे फॉण्ट में दिया जाता था.
प्रकाश जी और आबिद सुरती जी से बात करते हुए मुझे शेहाब जी के बारे में जो जानकारी प्राप्त हुई वह दर्द में डूबी हुई एक आर्टिस्ट की मूक गाथा है.शेहाब जी बहुत कम बोलने वाले इन्सान थे .उन्होंने अपनी जिंदिगी के दर्द को कभी किसी के साथ नहीं बाटा,हालाकि कभी कभी यह दर्द जहाँ -तहां उनकी आर्ट में बयां हो जाता है.
चलिए अब शेहाब जी की जिंदिगी में झाकते हैं.शेहाब जी का जन्म इलाहाबाद में हुआ था .जब वह १२ साल के थे तब उनके माँ -बाप का देहांत हो गया था.उनके एक भाई थे जो की बस ड्राईवर थे.शेहाब जी ने मेट्रिक तक ही शिक्षा पाई थी .अपना गुज़ारा चलाने के लिए उन्होंने कारपेंटर का भी काम किया था.उन्होंने कार्टूनिग का काम फ्रीलांसिंग के रूप में शुरू किया था.उन्होंने कई कॉमिक्स Character की रचना की थी .जैसे -मंगलू मदारी बन्दर बिहारी ,छोटू लम्बू ,चिम्पू,चमन चार्ली .इनसब में सबसे ज्यादह मशहुर था उनका चिम्पू.चिम्पू 1984 में इंद्रजाल कॉमिक्स के आखरी पन्नो में हुआ करता था.इसके अलावा उनका एक और Character था ...छोटू -लम्बू जो की पराग में 1958 में publish हुआ करता था.Diamond कॉमिक्स के लिए उन्होंने कुछ कॉमिक्स भी बनाये थे.जैसे -मंगलू मदारी -बन्दर बिहारी,छोटू लम्बू.कार्टूनिंग के साथ -साथ वह कैलीग्राफी भी किया करते थे.....उस समय एक कार्टून स्ट्रिप के उन्हें 5 रुपये मिला करते थे .
यह वह दौर था जब मुंबई में ट्राम चला करती थीं.लोग सुबह-सुबह अपने काम धंधो को जाने के लिए ट्राम का इस्तेमाल किया करते थे .ऐसा ही एक दिन रहा होगा जब शेहाब जी अपनी बने हुई स्ट्रिप को लेकर Bennett and coleman (Times of India) के दफ्टर को निकले थे.ट्राम आ कर रुकी और शेहाब जी ने चढ़ने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए.कुछ ही समय के इंतज़ार में दूसरी ट्राम आ गई .....इसको पकड़ने के चक्कर में न जाने कैसे शेहाब जी के पैर ट्राम के नीचे आ गए .इस दुर्घटना ने शेहाब जी की जिंदिगी बादल डाली .दोनों पैर गवा देने के बाद भी शेहाब जी ने मुश्किलों से हार नहीं मानी. वह कार्टूनिग से जुड़े रहे.मुश्किलों और मुफलिसी से जैसे शेहाब जी ने अब दोस्ती कर ली थी.शेहाब जी का कार्टून स्ट्रिप चिम्पू ,बिना dialogue की हुआ करती थी उनका गज़ब का sens of humer लोगो को सिर्फ चित्र देख कर हँसा देता था .उनके कार्टून को देख कर लगता है की वह कहीं न कहीं महान आर्टिस्ट चार्ली चैपलिन से inspire थे .जो की बिना एक भी शब्द बोले लोगो को हँसा-हँसा कर लोटपोट कर देता था.शेहाब जी के एक कार्टून character का नाम भी चमन चार्ली है.
अपनी जिंदिगी के आखरी दिन शेहाब जी ने इतनी गुमनामी में गुज़ारे की उनके दोस्त और निकट सम्बन्धी लोगो भी नहीं पता चल पाया की शेहाब जी कब इस दुनिया को अलविदा कह कर एक अनजाने सफ़र की ओर बढ गए.अपनी छोटी सी जिंदिगी में शेहाब जी ने जितना भी कार्टूनिंग में काम किया वह भारतीय कॉमिक्स के इतिहास में उनको अमर करने के लिए काफी है.आज शेहाब जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके बनाये कार्टून हमारी जिंदगी में सदा ख़ुशी के रंग घोलते रहेंगे.
(आबिद सुरती और प्रकाश नेरुलकर के साथ हुई बात-चीत पर आधारित).
यदि आप को लगता है की दी गई जानकारी में कुछ कमियां है या इसको और भी बढाया जा सकता है तो कीर्प्या हमे ज़रूर बताए. .
بھارتی كمكس تہذیب کی تلاش ''شےهاب جی''
انڈین كمكس کے golden age کے کارٹونسٹ / چتركارو اور لےكھكو کی تلاش کرتے ہوئے میں نے جانا کی کچھ آرٹسٹ اتنے عظیم ہے کی وہ چپ چاپ اپنا کام کرتے رہے. انہوں نے کبھی نام پیسہ شہرت کی چاہت نہیں کی. جہاں تک کی آج بھی کئی ایسے آرٹسٹ ہیں جن سے میں ملا ہوں ، وہ کبھی بھی اپنے آپ کو بیرونی علامت (لوگو) کے درمیان لانا پسند نہیں کرتے ہیں. مکمل گھر -- خاندان ہوتے ہوئے بھی اےكاكي زندگی پسند کرتے ہیں. صدیوں سے ہمارے ملک میں ہوتا آیا ہے اس کی ایک سچا اور اچھا آرٹسٹ کبھی بھی نام پیسہ شہرت کے پیچھے نہیں بھاگتا ہے. بھارتی comcis کے ان عظیم آرٹسٹ نے اس کو بخوبی نبھایا ہے. بھارتی آرٹسٹ کو لے کر میری تلاش مجھے Delhi ، Mumbai ، Puna ، Meerut اور نہ جانے کہاں کہاں تک لے گئی. ان میں کچھ آرٹسٹ ایسے ہیں جن کے بارے میں کافی کوشش کرنے کے بعد بھی میں بہت کم معلومات جٹا پایا ہوں. ایسے ہی ایک عظیم کارٹونسٹ تھے ''شےهاب'' (Shehab). شےهاب جی کا پورا نام شیخ شہاب الدین ''تھا. شےهاب جی کے بارے میں معلومات جٹاتے ہوئے میں نے ممبئی کے دھاراوي ، ڈوگري کے کئی چکر لگائے. لیکن میرے ہاتھ کچھ بھی نہ لگا ، تب میں نے ادرجال كمكس کے ایک كےليگراپھي آرٹسٹ ''روشنی نےرلكر'' کو ڈھونڈھ نکلا. یہ بہت مشکل تھا کیوںک اس وقت كمكس میں صرف آرٹسٹ اور کہانی کار کا نام ہی ہوتا تھا. كےليگراپھي آرٹسٹ کا نام نہیں ہوتا تھا. ایڈیٹر کا نام بھی كمكس کے آخری صفحے پر بہت چھوٹے پھٹ میں دیا جاتا تھا. پرکاش جی اور عابد سرتي جی سے بات کرتے ہوئے مجھے شےهاب جی کے بارے میں جو معلومات حاصل ہوئی وہ درد میں ڈوبی ہوئی ایک آرٹسٹ کی خاموش کہانی ہے. شےهاب جی بہت کم بولنے والے انسان تھے. انہوں نے اپنی جدگي کے درد کو کبھی کسی کے ساتھ نہیں باٹا ، حالانکہ کبھی کبھی یہ درد جہاں -- تها ان کی آرٹ میں بیاں ہو جاتا ہے. چلئے اب شےهاب جی کی جدگي میں جھاكتے ہیں. شےهاب جی کی پیدائش الہ آباد میں ہوا تھا جب وہ 12 سال کے تھے تب ان کے ماں -- باپ کا انتقال ہو گیا تھا. ان کے ایک بھائی تھے جو کی بس ڈرائیور تھے. شےهاب جی نے مےٹرك تک ہی تعلیم پائی تھی. اپنا گزارا چلانے کے لئے انہوں نے كارپےٹر کا بھی کام کیا تھا. انہوں نے كارٹونگ کا کام پھريلاسگ کے طور پر شروع کیا تھا. انہوں نے کئی كمكس Character کی تخلیق کی تھی. جیسے -- مگلو مداري بندر بہاری ، چھوٹو لمبو ، چمپو ، چمن چارلي. انسب میں سب سے جياده مشهر تھا ان کا چمپو. چمپو 1984 میں ادرجال كمكس کے آخری پننو میں ہوا کرتا تھا ، اس کے علاوہ ان کا ایک اور Character تھا... چھوٹو -- لمبو جو کی پراگ میں 1958 میں publish ہوا کرتا تھا . Diamond كمكس کے لیے انہوں نے کچھ كمكس بھی بنائے تھے. جیسے -- مگلو مداري -- بندر بہاری ، چھوٹو لمبو. كارٹونگ کے ساتھ -- ساتھ وہ كےليگراپھي بھی کیا کرتے تھے..... اس وقت ایک کارٹون سٹرپ کے انہیں 5 روپے ملا کرتے تھے. یہ وہ دور تھا جب ممبئی میں ٹرام چلا کرتی تھیں. لوگ صبح -- صبح اپنے کام دھدھو کو جانے کے لئے ٹرام کا استعمال کیا کرتے تھے. ایسا ہی ایک دن رہا ہوگا جب شےهاب جی اپنی بنے ہوئی سٹرپ کو لے کر Bennett and coleman (Times of India) کے دپھٹر کو نکلے تھے. ٹرام آ کر رکی اور شےهاب جی نے چڑھنے کی کوشش کی لیکن کامیاب نہیں ہوئے. کچھ ہی وقت کے انتظار میں دوسری ٹرام آ گئی..... اس کو پکڑنے کے چکر میں نہ جانے کیسے شےهاب جی کے پیر ٹرام کے نیچے آ گئے. اس حادثے نے شےهاب جی کی جدگي بادل ڈالی. دونوں پاؤں گوا دینے کے بعد بھی شےهاب جی نے مشکلوں سے ہار نہیں مانی. وہ كارٹونگ سے جڑے رہے. مشکلوں اور مپھلسي سے جیسے شےهاب جی نے اب دوستی کر لی تھی. شےهاب جی کا کارٹون سٹرپ چمپو ، بغیر dialogue کی ہوا کرتی تھی ان کا غضب کا sens of humer علامت کو صرف تصاویر دیکھ کر ہنسا دیتا تھا. ان کارٹون کو دیکھ کر لگتا ہے کی وہ کہیں نہ کہیں عظیم آرٹسٹ چارلي چےپلن سے inspire تھے. جو کی بنا ایک بھی لفظ بولے علامت کو ہنسا -- ہنسا کر لوٹپوٹ کر دیتا تھا. شےهاب جی کے ایک کارٹون character کا نام بھی چمن چارلي ہے.
اپنی جدگي کے آخری دن شےهاب جی نے اتنی گمنامی میں گزارے کی ان کے دوست اور قریبی رشتہ دار علامت بھی نہیں پتہ چل پایا کی شےهاب جی کب اس دنیا کو الوداع کہہ کر ایک انجانے سفر کی طرف بڑھ گئے. اپنی چھوٹی سی جدگي میں شےهاب جی نے جتنا بھی كارٹونگ میں کام کیا وہ بھارتی كمكس کی تاریخ میں ان کو امر کرنے کے لئے کافی ہے. آج شےهاب جی آج ہمارے درمیان نہیں ہے لیکن ان کے بنائے کارٹون ہماری زندگی میں ہمیشہ خوشی کے رنگ گھولتے رہیں گے. (عابد سرتي اور روشنی نےرلكر کے ساتھ ہوئی بات -- چیت پر مبنی). اگر آپ کو لگتا ہے کی دی گئی معلومات میں کچھ خامیاں ہیں یا اس کو اور بھی بڈھایا جا سکتا ہے تو كيرپيا ہمیں ضرور بتائے. .
(आबिद सुरती और प्रकाश नेरुलकर के साथ हुई बात-चीत पर आधारित).
यदि आप को लगता है की दी गई जानकारी में कुछ कमियां है या इसको और भी बढाया जा सकता है तो कीर्प्या हमे ज़रूर बताए. .
بھارتی كمكس تہذیب کی تلاش ''شےهاب جی''
انڈین كمكس کے golden age کے کارٹونسٹ / چتركارو اور لےكھكو کی تلاش کرتے ہوئے میں نے جانا کی کچھ آرٹسٹ اتنے عظیم ہے کی وہ چپ چاپ اپنا کام کرتے رہے. انہوں نے کبھی نام پیسہ شہرت کی چاہت نہیں کی. جہاں تک کی آج بھی کئی ایسے آرٹسٹ ہیں جن سے میں ملا ہوں ، وہ کبھی بھی اپنے آپ کو بیرونی علامت (لوگو) کے درمیان لانا پسند نہیں کرتے ہیں. مکمل گھر -- خاندان ہوتے ہوئے بھی اےكاكي زندگی پسند کرتے ہیں. صدیوں سے ہمارے ملک میں ہوتا آیا ہے اس کی ایک سچا اور اچھا آرٹسٹ کبھی بھی نام پیسہ شہرت کے پیچھے نہیں بھاگتا ہے. بھارتی comcis کے ان عظیم آرٹسٹ نے اس کو بخوبی نبھایا ہے. بھارتی آرٹسٹ کو لے کر میری تلاش مجھے Delhi ، Mumbai ، Puna ، Meerut اور نہ جانے کہاں کہاں تک لے گئی. ان میں کچھ آرٹسٹ ایسے ہیں جن کے بارے میں کافی کوشش کرنے کے بعد بھی میں بہت کم معلومات جٹا پایا ہوں. ایسے ہی ایک عظیم کارٹونسٹ تھے ''شےهاب'' (Shehab). شےهاب جی کا پورا نام شیخ شہاب الدین ''تھا. شےهاب جی کے بارے میں معلومات جٹاتے ہوئے میں نے ممبئی کے دھاراوي ، ڈوگري کے کئی چکر لگائے. لیکن میرے ہاتھ کچھ بھی نہ لگا ، تب میں نے ادرجال كمكس کے ایک كےليگراپھي آرٹسٹ ''روشنی نےرلكر'' کو ڈھونڈھ نکلا. یہ بہت مشکل تھا کیوںک اس وقت كمكس میں صرف آرٹسٹ اور کہانی کار کا نام ہی ہوتا تھا. كےليگراپھي آرٹسٹ کا نام نہیں ہوتا تھا. ایڈیٹر کا نام بھی كمكس کے آخری صفحے پر بہت چھوٹے پھٹ میں دیا جاتا تھا. پرکاش جی اور عابد سرتي جی سے بات کرتے ہوئے مجھے شےهاب جی کے بارے میں جو معلومات حاصل ہوئی وہ درد میں ڈوبی ہوئی ایک آرٹسٹ کی خاموش کہانی ہے. شےهاب جی بہت کم بولنے والے انسان تھے. انہوں نے اپنی جدگي کے درد کو کبھی کسی کے ساتھ نہیں باٹا ، حالانکہ کبھی کبھی یہ درد جہاں -- تها ان کی آرٹ میں بیاں ہو جاتا ہے. چلئے اب شےهاب جی کی جدگي میں جھاكتے ہیں. شےهاب جی کی پیدائش الہ آباد میں ہوا تھا جب وہ 12 سال کے تھے تب ان کے ماں -- باپ کا انتقال ہو گیا تھا. ان کے ایک بھائی تھے جو کی بس ڈرائیور تھے. شےهاب جی نے مےٹرك تک ہی تعلیم پائی تھی. اپنا گزارا چلانے کے لئے انہوں نے كارپےٹر کا بھی کام کیا تھا. انہوں نے كارٹونگ کا کام پھريلاسگ کے طور پر شروع کیا تھا. انہوں نے کئی كمكس Character کی تخلیق کی تھی. جیسے -- مگلو مداري بندر بہاری ، چھوٹو لمبو ، چمپو ، چمن چارلي. انسب میں سب سے جياده مشهر تھا ان کا چمپو. چمپو 1984 میں ادرجال كمكس کے آخری پننو میں ہوا کرتا تھا ، اس کے علاوہ ان کا ایک اور Character تھا... چھوٹو -- لمبو جو کی پراگ میں 1958 میں publish ہوا کرتا تھا . Diamond كمكس کے لیے انہوں نے کچھ كمكس بھی بنائے تھے. جیسے -- مگلو مداري -- بندر بہاری ، چھوٹو لمبو. كارٹونگ کے ساتھ -- ساتھ وہ كےليگراپھي بھی کیا کرتے تھے..... اس وقت ایک کارٹون سٹرپ کے انہیں 5 روپے ملا کرتے تھے. یہ وہ دور تھا جب ممبئی میں ٹرام چلا کرتی تھیں. لوگ صبح -- صبح اپنے کام دھدھو کو جانے کے لئے ٹرام کا استعمال کیا کرتے تھے. ایسا ہی ایک دن رہا ہوگا جب شےهاب جی اپنی بنے ہوئی سٹرپ کو لے کر Bennett and coleman (Times of India) کے دپھٹر کو نکلے تھے. ٹرام آ کر رکی اور شےهاب جی نے چڑھنے کی کوشش کی لیکن کامیاب نہیں ہوئے. کچھ ہی وقت کے انتظار میں دوسری ٹرام آ گئی..... اس کو پکڑنے کے چکر میں نہ جانے کیسے شےهاب جی کے پیر ٹرام کے نیچے آ گئے. اس حادثے نے شےهاب جی کی جدگي بادل ڈالی. دونوں پاؤں گوا دینے کے بعد بھی شےهاب جی نے مشکلوں سے ہار نہیں مانی. وہ كارٹونگ سے جڑے رہے. مشکلوں اور مپھلسي سے جیسے شےهاب جی نے اب دوستی کر لی تھی. شےهاب جی کا کارٹون سٹرپ چمپو ، بغیر dialogue کی ہوا کرتی تھی ان کا غضب کا sens of humer علامت کو صرف تصاویر دیکھ کر ہنسا دیتا تھا. ان کارٹون کو دیکھ کر لگتا ہے کی وہ کہیں نہ کہیں عظیم آرٹسٹ چارلي چےپلن سے inspire تھے. جو کی بنا ایک بھی لفظ بولے علامت کو ہنسا -- ہنسا کر لوٹپوٹ کر دیتا تھا. شےهاب جی کے ایک کارٹون character کا نام بھی چمن چارلي ہے.
اپنی جدگي کے آخری دن شےهاب جی نے اتنی گمنامی میں گزارے کی ان کے دوست اور قریبی رشتہ دار علامت بھی نہیں پتہ چل پایا کی شےهاب جی کب اس دنیا کو الوداع کہہ کر ایک انجانے سفر کی طرف بڑھ گئے. اپنی چھوٹی سی جدگي میں شےهاب جی نے جتنا بھی كارٹونگ میں کام کیا وہ بھارتی كمكس کی تاریخ میں ان کو امر کرنے کے لئے کافی ہے. آج شےهاب جی آج ہمارے درمیان نہیں ہے لیکن ان کے بنائے کارٹون ہماری زندگی میں ہمیشہ خوشی کے رنگ گھولتے رہیں گے. (عابد سرتي اور روشنی نےرلكر کے ساتھ ہوئی بات -- چیت پر مبنی). اگر آپ کو لگتا ہے کی دی گئی معلومات میں کچھ خامیاں ہیں یا اس کو اور بھی بڈھایا جا سکتا ہے تو كيرپيا ہمیں ضرور بتائے. .
2 comments:
Very nice info Usman Bhai,waiting for more such info to come from you.
thankz Comics World.........!!!
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