परमाणु ऊर्जा कॉर्प की कॉमिक्स
- बिमन मुखर्जी
कॉमिक बुक का एक किरदार, जो जापान के फुकुशीमा दाईची पावर प्लान्ट में आई आपदा के मद्देनज़र भारत में परमाणु शक्ति को लेकर चिंताओं को शांत करने के लिए रचा गया, परमाणु ऊर्जा पर होने वाले विरोध पर काबू पाने में भारत सरकार की मदद करने के अलावा बिजली की कमी की गंभीर समस्या से भी निपट रहा है।
38 पृष्ठों वाली कॉमिक बुक, ‘समीर, एन एजुकेटिड लोकल यूथ’ (समीर एक शिक्षित स्थानीय युवा), का मुख्य किरदार शहर में रहता है। वो कॉमिक द्वारा उर्द्धत ग्रामीण भारत में मौजूद “परमाणु विज्ञान से जुड़े कई मिथकों” को दूर करने का बीड़ा उठाता है और मानवता से जुड़े इसके तमाम फायदों को सविस्तार बताता है।
कॉमिक के किरदार कुछ इस तरह के प्रश्न पूछते हैं, “क्या मेरे पशु मर जाएगें? क्या मेरी ज़मीन बंजर हो जाएगी? क्या परमाणु संयत्र के नज़दीक रहने से मैं पिता बन पाऊंगा?”
भारत में सालों से परमाणु ऊर्जा से जुड़े जोखिमों और फायदों से संबद्ध प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। देश के पहले परमाणु ऊर्जा संयत्र ने करीब एक दशक तक चले काम के बाद पिछले महीने से गतिविधि शुरू की। ये ऐसी बहस है, जो आगे भी लगातार चले, क्योंकि सरकारी न्यूक्लियर पावर कॉर्प (परमाणु ऊर्जा कॉर्प) एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू करने जा रहा है, जो 2032 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन को वर्तमान के 4.7 गीगा वाट्स से 63 गीगा वॉट्स तक करने से जुड़ी है।
भारत, जहां कच्चे तेल अथवा प्राकृतिक गैस के बड़े भंडारों का अभाव है, ऊर्जा-आपूर्ति अंतराल को भरने के लिए परमाणु ऊर्जा की तरफ ताक रहा है। ये अंतराल कुल मांग का अनुमानत: 9 फीसदी तक है।
तमिलनाडु में रूस-समर्थित संयत्र कुडानकुलम ने अक्तूबर में ऊर्जा पैदा करनी शुरू कर दी। लेकिन इससे पहले इसका स्थानीय लोगों ने व्यापक विरोध किया, विशेष तौर पर मार्च 2011 में जब जापान में आए भूकंप के कारण वहां के फुकुशीमा संयत्र को नुकसान पहुंचा था।
भारतीय संयत्र का निर्माण 2002 में शुरू हुआ और इसमें 2006 तक काम भी शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन स्थानीय लोगों और गैर-परमाणु लॉबी के विरोध के कारण इसकी शुरुआत में देरी हुई। ये संयत्र मुकदमों से भी प्रभावित हुआ, जो दावा करते थे कि इससे आसपास रहने वाले हज़ारों लोगों के जीवन पर इसके चलते खतरा मंडराएगा।
मई में सुप्रीम कोर्ट ने जब प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं को निरस्त किया, तब जाकर कुडानकुलम संयत्र की 1,000-मेगावॉट वाली पहली इकाई के काम ने गति पकड़ी।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से सुसज्जित, एनपीसी ने स्थानीय टेलीविज़न चैनलों पर फिल्म दिखाकर संचार अभियान की शुरुआत की। इनमें कॉमिक्स वाले किरदार ही दिखाए गए। कंपनी ने ग्रामीण इलाकों में प्रदर्शनियों के साथ-साथ फिल्में दिखाने के लिए ऑडियो-विज़ुअल उपकरण से लैस वैनों का भी इस्तेमाल किया।
“द स्टोरी ऑफ बुधिया” में, ग्राम प्रमुख का कॉलेज जाने वाला पोता समीर व्याकुल गांववालों से कहता है, “परमाणु ऊर्जा संयत्र से पैदा होने वाली बिजली, साफ, पर्यावरण के अनुकूल और सस्ती है।”
“और दरअसल ये प्रदूषण को रोकती है,” समीर गांववालों से कहता है। “इसलिए आपकी फसलें, बगीचे और मछली पकड़ना इससे अप्रभावित, स्वच्छ और सुरक्षित रहेगा,” वह कहानी में जोड़ता है।
कॉमिक बुक की हज़ारों प्रतियां प्रस्तावित और मौजूदा परमाणु संयत्र स्थलों में वितरित की गईं, जिनमें हरियाणा का हिसार, राजस्थान का माहीबसवाड़ी और आंध्र प्रदेश का खुवाद शामिल है।
“हमारा मकसद था कि एक रिक्शा चालक, किसान अथवा गृहिणी भी परमाणु ऊर्जा को समझ सके,” अमृतेश श्रीवास्तव ने कहा, जो एनपीसी में कॉरपोरेट कम्युनिकेशन के प्रबंधक हैं।
“इसने काफी हद तक विरोध को कम किया और लोगों ने ये समझना शुरू किया कि ये उनके लिए अच्छी होगी और बिजली की कमी की समस्या को दूर करेगी,” अमृतेश श्रीवास्तव ने कहा।
उन्होंने स्वीकारा कि अब भी परमाणु ऊर्जा उत्पादन को लेकर कुछ विरोध ज़रूर है, लेकिन वह कहते हैं कि कॉमिक बुक के किरदार कई परिवारों का दिल जीतने में मददगार रहे, विशेष तौर पर बच्चे वाले परिवारों के।
हालांकि, ग्रीनपीस के एक कार्यकर्ता ने कहा कि कॉमिक बुक अभियान अनुपयुक्त था।
“ये काफी कुछ दूसरों को नीचा दिखाने सरीखा था, क्योंकि आपके हिसाब से दूसरे लोग बात को समझ ही नहीं सकते। अगर आप वाकई लोगों को जोड़ना चाहते हैं, तो आपको उनसे परमाणु मुद्दों पर बात करनी चाहिए,” करूणा रैना ने कहा, जो भारत में ग्रीनपीस की वरिष्ठ ऊर्जा प्रचारक हैं।
“उन्हें नासमझ मत समझिए। अगर वे विरोध कर रहे हैं, तो इसका मतलब कि समझ रहे हैं,” उन्होंने आगे ये जोड़ते हुए कहा कि देश में अब भी परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को लेकर अच्छा-खासा विरोध है।
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Source:-http://realtime.wsj.com
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